200+Gulzar Shayari
Gulzar Shayari : कुछ लोगों को पढ़ते वक्त आपको ये नहीं लगेगा कि आप कुछ पढ़ रहें हैं बल्कि आपको लगने लगेगा आप कुछ जी रहें हैं। किसी के लिखे हर शब्द में एक कहानी की शुरुआत दिखने लगती है। किसी की लिखी दो पंक्तियों में ज़िंदगी और मौत के बीच का वक्त दिखने लगता है। कुछ ऐसा ही जादू है गुलज़ार के लिखे में।
गुलज़ार शायरी (gulzar ki shayari), नज़्म और काफी कुछ लिख चुके हैं। खासतौर पर गुलज़ार के शेर आपको बच्चे-बच्चे की जुबान से भी सुनने को मिलेंगे। खड़ी बोली में लिखी गुलज़ार की शायरी (gulzar hindi shayari) हर उम्र के लोगों को पसंद आती है। उनका लिखा किसी खास उम्र से ताल्लुकात नहीं रखता।
प्यार पर उम्दा शायरियां लिखने वाले गुलज़ार, ज़िंदगी पर भी बेहतरीन लिखते हैं। उनके लिखे में कब प्यार और ज़िंदगी एक बन जाती है, पढ़ने वाले को पता भी नहीं चलता है। कभी न कभी गुलज़ार की शायरी हम सभी ने सुनी होगी। आज हम उनकी लिखी बेहतरीन रचनाओं में से उन शायरियों पर नज़र डालेंगे जो उन्होनें ज़िंदगी के अनुभवों पर लिखी हैं।
जिंदगी पर गुलज़ार की शायरी (Zindagi par gulzar ki shayari)

गुलज़ार की लिखी इस शायरी में ज़िंदगी का एक बेहद कड़वा सच छिपा है। हम सब यही तो करते हैं, दूसरों में गलतियां निकालते हैं। कई बार तो अपनी गलतियों का इल्ज़ाम भी दूसरों पर ही लगाते हैं। गुलज़ार कहते हैं कि अगर हम ऐसा करने से बच जाएं तो हम खुद की कमियों पर काम कर सकते हैं और हर क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। इस शायरी में ‘फरिश्ते’ का मतलब ही है अपनी ज़िंदगी में सफल होना।
पूरे की ख्वाहिश में ये इंसान बहुत कुछ खोता है,
भूल जाता है कि आधा चांद भी खूबसूरत होता है।
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा
ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी

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शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता है
20+Gulzar Shayari गुलज़ार शायरी
कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
सहर न आई कई बार नींद से जागे
थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
गुलज़ार की टॉप 20 शायरी

कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
आप के बा’द हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
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उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने, औरों में नुक्स निकालते-निकालते
इतना खुद को तराशा होता, तो फरिश्ते बन जाते।